Murlikant Petkar का नाम जब भी लिया जाता है, तो उनके अदम्य साहस और दृढ़ निश्चय की कहानी हमें प्रेरित करती है। 1965 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में अपनी रीढ़ की हड्डी में गोली लगने और फिर दो साल तक कोमा में रहने के बावजूद, उन्होंने कभी हार नहीं मानी और आगे चलकर भारत के पहले पैरालंपिक स्वर्ण पदक विजेता बने। उनकी जिंदगी पर आधारित फिल्म “चंदू चैम्पियन” हमारे सामने आ चुकी है, जिसमे उनके संघर्ष और विजय की कहानी को पर्दे पर जीवंत किया गया है।
प्रारंभिक जीवन और ओलंपिक सपना
Murlikant Petkar का जन्म महाराष्ट्र के सांगली जिले के एक छोटे से गाँव पेत इस्लामपुर में हुआ था। उन्होंने मात्र 8 साल की उम्र में 1952 के हेलसिंकी ओलंपिक में भारतीय पहलवान खशाबा जाधव की जीत को देखा, जिसने उन्हें भी एक दिन ओलंपिक पदक जीतने की प्रेरणा दी। उस समय के समाज में खेलों के लिए सीमित संसाधनों और जागरूकता के बावजूद, Murlikant Petkar ने अपने सपनों को सच करने की ठान ली।
युद्ध की विभीषिका और शारीरिक संघर्ष
1965 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में, Murlikant Petkar भारतीय सेना के जवान के रूप में अपनी सेवाएं दे रहे थे। दुश्मनों के हमले में उन्होंने नौ गोलियां खाईं और उनकी रीढ़ की हड्डी बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो गई। इसके बाद, वह दो साल तक कोमा में रहे। जब होश आया, तो उन्हें बताया गया कि अब वह कभी चल नहीं पाएंगे, और एक गोली उनकी रीढ़ की हड्डी में हमेशा के लिए फंसी रहेगी।
इस विनाशकारी घटना के बावजूद, Murlikant Petkar ने हार नहीं मानी। डॉक्टरों ने उन्हें अपनी शारीरिक शक्ति को पुनः प्राप्त करने के लिए तैराकी करने की सलाह दी। अस्पताल के स्विमिंग पूल में रोज़ाना अभ्यास करते हुए, मुरलीकांत ने कुछ ही महीनों में तैराकी में महारत हासिल कर ली। यह वही तैराकी थी जिसने उन्हें पैरालंपिक में स्वर्ण पदक दिलाने का मार्ग प्रशस्त किया।
पैरालंपिक में स्वर्ण पदक जीत
1972 के हीडलबर्ग पैरालंपिक खेलों में, Murlikant Petkar ने 50 मीटर फ्रीस्टाइल स्विमिंग इवेंट में स्वर्ण पदक जीता और 37.33 सेकंड का नया विश्व रिकॉर्ड बनाया। वह न केवल भारत के पहले पैरालंपिक स्वर्ण पदक विजेता बने, बल्कि उन्होंने साबित किया कि दृढ़ निश्चय और आत्मविश्वास से बड़ी से बड़ी बाधा को पार किया जा सकता है। इस अद्वितीय उपलब्धि को प्राप्त करने पर Murlikant Petkar ने कहा, “मुझे केवल पदक दिख रहा था, मैं मानसिक रूप से बहुत मजबूत था।”
परिवार और समाज से संघर्ष
Murlikant Petkar की जीवन यात्रा केवल उनकी शारीरिक चुनौतियों तक सीमित नहीं थी। सामाजिक स्तर पर भी उन्हें कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। जब उन्होंने अपने गाँव में ओलंपिक स्वर्ण पदक जीतने की इच्छा व्यक्त की, तो लोगों ने उनका मज़ाक उड़ाया और उनका उपहास किया। उनके संघर्ष और अपार धैर्य के बावजूद, उनकी उपलब्धि को लंबे समय तक राष्ट्रीय स्तर पर वह सम्मान नहीं मिला जिसके वह हकदार थे।
Murlikant Petkar और चंदू चैम्पियन
Murlikant Petkar की अविस्मरणीय कहानी पर आधारित फिल्म “चंदू चैम्पियन” रिलीज़ हो चुकी है, जो उनके साहस और विजय की यात्रा को दर्शाएगी। “चंदू चैम्पियन” न केवल Murlikant Petkar के जीवन की कठिनाइयों को चित्रित करेगा, बल्कि यह फिल्म उन लाखों लोगों के लिए प्रेरणा का स्रोत बनेगी जो विपरीत परिस्थितियों का सामना कर रहे हैं। चंदू चैम्पियन Murlikant Petkar की संघर्ष की कहानी को नई पीढ़ी तक पहुँचाने का एक महत्वपूर्ण माध्यम बनेगी।
Murlikant Petkar के विचार
Murlikant Petkar का मानना है कि गाँवों में प्रतिभा की कोई कमी नहीं है, लेकिन खेल प्रशिक्षण और संसाधनों की आवश्यकता है। उनके अनुसार, यदि गाँवों में अधिक खेल अकादमियाँ और प्रशिक्षण केंद्र स्थापित किए जाएँ, तो भारत और भी अधिक स्वर्ण पदक जीत सकता है। उन्हें 2018 में पद्मश्री से सम्मानित किया गया, जो उनके अद्वितीय योगदान को मान्यता देने के लिए एक महत्वपूर्ण कदम था।
निष्कर्ष
Murlikant Petkar की कहानी हमें यह सिखाती है कि जीवन में कितनी भी मुश्किलें क्यों न आएं, अगर हमारे पास आत्मविश्वास और दृढ़ निश्चय हो, तो हम किसी भी लक्ष्य को प्राप्त कर सकते हैं। “चंदू चैम्पियन” फिल्म के माध्यम से उनकी कहानी को जानकर, हम सभी उनके साहस और धैर्य से प्रेरणा ले सकते हैं। Murlikant Petkar, चंदू चैम्पियन, और पैरालंपिक स्वर्ण पदक विजेता जैसे व्यक्तित्व हमें यह याद दिलाते हैं कि जीवन की चुनौतियाँ हमें मजबूती प्रदान करती हैं, और हर व्यक्ति के भीतर अदम्य शक्ति छिपी होती है।
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