8th November 2024

कोन है Lidia Thorpe: जिसने किंग चार्ल्स पर आदिवासी लोगों के साथ अन्याय का आरोप लगाया

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Lidia Thorpe

Lidia Thorpe, ऑस्ट्रेलियाई स्वतंत्र सीनेटर, ने हाल ही में किंग चार्ल्स के खिलाफ संसद में एक विरोध प्रदर्शन किया जिसने पूरी दुनिया का ध्यान आकर्षित किया। उन्होंने किंग चार्ल्स पर आदिवासी लोगों के साथ अन्याय और उनकी जमीनों की चोरी का आरोप लगाया। थॉर्प की इस हेकलिंग ने ब्रिटिश राजशाही के खिलाफ उनके लंबे समय से चले आ रहे विरोध को एक बार फिर उजागर किया। आइए जानें कि Lidia Thorpe कौन हैं और उनका यह विरोध क्यों महत्वपूर्ण है।

Lidia Thorpe: एक परिचय

Lidia Thorpe का जन्म 1973 में विक्टोरिया राज्य के कार्लटन में हुआ था। वह गुनाई, गुंडिट्ज़मारा और दजाब वुरुंग जनजातियों से ताल्लुक रखती हैं और लंबे समय से आदिवासी अधिकारों के लिए आवाज उठाती आई हैं। थॉर्प ने स्विनबर्न यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्नोलॉजी से सामुदायिक विकास में डिप्लोमा और सार्वजनिक क्षेत्र प्रबंधन में स्नातक प्रमाणपत्र प्राप्त किया है।

Lidia Thorpe हमेशा से ब्रिटिश राजशाही की आलोचक रही हैं। उनके विचारों और कार्यों का आधार यह है कि किंग चार्ल्स को ऑस्ट्रेलिया का वैध शासक नहीं माना जा सकता क्योंकि वह इस भूमि से नहीं हैं। वह आदिवासी समुदायों के अधिकारों और न्याय के लिए एक सशक्त आवाज रही हैं।

Lidia Thorpe

Lidia Thorpe की राजनीतिक यात्रा

2017 में Lidia Thorpe पहली बार विक्टोरियन विधान सभा के लिए नॉर्थकोट सीट से चुनी गईं। उन्हें 45% से अधिक प्राथमिक वोट मिले, लेकिन 2018 में वह लेबर पार्टी की उम्मीदवार केट थियोफेनस से अपनी सीट हार गईं।

2020 में, विक्टोरियन ग्रीन्स ने Lidia Thorpe को संघीय सीनेट सीट के लिए चुना, जो रिचर्ड डी नटाले के इस्तीफे के बाद खाली हुई थी। इस चुनाव ने उन्हें विक्टोरिया से सीनेट में पहली आदिवासी महिला बना दिया। बाद में, 2022 में उनके पुन: चुनाव के बाद, उन्हें ग्रीन्स पार्टी के सीनेट में उपनेता के रूप में चुना गया। हालाँकि, फरवरी 2023 में उन्होंने ग्रीन्स पार्टी से इस्तीफा दे दिया क्योंकि पार्टी ने “इंडिजिनस वॉयस टू पार्लियामेंट” जनमत संग्रह का समर्थन किया, जिसका थॉर्प और उनके समर्थक विरोध कर रहे थे।

किंग चार्ल्स के खिलाफ विरोध

Lidia Thorpe ने हाल ही में किंग चार्ल्स के खिलाफ अपनी नाराजगी जाहिर की। उन्होंने उन्हें “हमारा राजा नहीं” कहते हुए आदिवासी लोगों के खिलाफ अन्याय और उनकी जमीनों की चोरी का आरोप लगाया। थॉर्प ने संसद में किंग चार्ल्स के संबोधन को बाधित किया और कहा, “आपने हमारे लोगों का नरसंहार किया। हमारी जमीन वापस दो, जो तुमने हमसे छीनी।” उनके इस बयान का वीडियो सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हुआ और उनकी सुरक्षा के लिए उन्हें संसद से बाहर ले जाया गया।

थॉर्प ने बाद में बीबीसी को बताया कि उनका उद्देश्य किंग चार्ल्स को यह स्पष्ट संदेश देना था कि “सॉवरेन होने के लिए आपको इस भूमि का होना चाहिए। वह इस भूमि से नहीं हैं।”

ब्रिटिश राजशाही के प्रति Lidia Thorpe का दृष्टिकोण

Lidia Thorpe का मानना है कि ब्रिटिश राजशाही ने ऑस्ट्रेलिया के आदिवासी लोगों के साथ बड़ा अन्याय किया है। उनके अनुसार, किंग चार्ल्स को आदिवासी समुदायों से चुराई गई संपत्ति और जमीन लौटानी चाहिए। वह राजशाही के साथ संवाद और शांति संधि की बात करती हैं ताकि अतीत में हुए अन्याय को सुलझाया जा सके।

थॉर्प का कहना है कि किंग चार्ल्स को केवल तब ही ऑस्ट्रेलिया का सॉवरेन माना जा सकता है जब वह यहां के लोगों और उनकी जमीनों के साथ न्याय करें। उन्होंने यह भी कहा कि शांति संधि के माध्यम से एक गणराज्य की ओर बढ़ना आदिवासी और गैर-आदिवासी ऑस्ट्रेलियाई लोगों के बीच की “अधूरी समस्याओं” का समाधान कर सकता है।

Lidia Thorpe की सक्रियता

Lidia Thorpe राजनीति में आने से पहले से ही आदिवासी अधिकारों के लिए सक्रिय रही हैं। वह न्याय प्रणाली में सुधार, पर्यावरणीय मुद्दों और भूमि अधिकारों के लिए अभियान चलाती रही हैं। थॉर्प के अनुसार, उनके जीवन की दिशा उनके पारिवारिक पृष्ठभूमि से तय हुई है। वह कहती हैं, “मुझे अपने लोगों की काली लड़ाई और संघर्ष से प्रभावित होना पड़ा… मैं इसमें पैदा हुई और इसके अलावा कुछ नहीं जानती।”

उनकी सक्रियता की मिसाल 2020 में सीनेटर के रूप में शपथ ग्रहण समारोह में भी देखने को मिली, जब उन्होंने काले शक्ति का सलाम किया और पारंपरिक पोसम-स्किन क्लोक पहनकर आदिवासी संदेश की छड़ी उठाई। उनकी यह छड़ी उन 441 आदिवासियों की मौत का प्रतीक थी जो 1991 की शाही आयोग के बाद से हिरासत में मारे गए थे। 2022 में, उन्होंने दोबारा चुने जाने के बाद रानी एलिजाबेथ द्वितीय को “उपनिवेशवादी महामहिम” कहा, जिसके लिए उन्हें शपथ को सही तरीके से दोहराने के लिए कहा गया।

Lidia Thorpe की यह संघर्षशील और स्पष्टवादी छवि उन्हें ऑस्ट्रेलियाई राजनीति में एक महत्वपूर्ण स्थान दिलाती है, खासकर आदिवासी समुदायों के अधिकारों के मुद्दों पर।

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